Tuesday 10 May 2011

जीवन शव सामान

मानव जीवन एक यात्रा है और इस यात्रा का आरंभ होता है, उसके जाम के साथ!एक शिशु जनम लेता है,शैशव अवस्था आती है, फिर युवा अवस्था और वर्धा अवस्था इसके बाद अंतिम चरण में मृत्यु का तांडव होता है!साधारणतः लोग जीवन मृत्यु को ही जीवन समझते हैं किन्तु महापुरुषों ने इसको जीवन नहीं कहा है!
वास्तव में जीवन का आरंभ तबी होता है जब हम उस प्रभु की वास्तविक भक्ति को जन कर उस मृत्यु से उस अमृतमय प्रभु की और जाना आरंभ कर देते हैं,
इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है --
जिनःह  हरी भगती ह्रदय नहीं आनी!
जीवित सव सामान तेई  प्राणी !! राम चरित्र मानस
जिनके अन्तेह्करण में प्रभु की भक्ति नहीं है वो एक शव के सामान है !महापुरुषों के अनुसार जीवन केवल श्वासों के चलने का नाम नहीं है अपितु प्रभु की भक्ति को जानकर मनुष्य जनम के उद्देश्य को पूर्ण कर लेना है !
सो जीवियो जिसु मनी वसिया सोई !
नानक अवरु न जीवे कोई !! गुरु वाणी
जिसके मन में प्रभु का नि वस् हो गया है वास्तव में वाही जीवित है बाकि सभी तोह मृतक ही हैं क्यूंकि वो इश्वर को जाने बिना सण प्रतिक्षण मृत्यु की और बढ़ रहे हैं!
कबीरदास जी कहते हैं--
जननी जानत सुतु बड़ा होत है!
इतना कु न जाने ज़ि दिन दिन अवधा घटतु है !!
एक माँ अपने बच्चे  का जनम दिन मानती है तोह बड़ी ख़ुशी से कहते है की मेरा पुत्र १० वर्ष का हो गया वो ये नहीं जानती की उसका पुत्र १० वर्ष और मृत्यु के निकट पहुच गया जबकि वास्तविकता यह है की हम जीवन की आर नहीं बल्कि मृत्यु की और अग्रसर हो रहे हैं.
महाभारत की एक कथा अति है की एक व्यक्ति घने जंगल में गया और मार्ग भूल गया उसने मार्ग धुंडने का बोहत प्रयास  किया पर उसे मार्ग नहीं मिला !उस जंगल में शेर चीते रिच हठी बोहत जोर जोर से गर्जना कर रहे थे ये सुन कर वो बोहत दर गया और इधर उधर भागने लगा !भागते भागते वो एक ऐसे स्थान पर पहुच गया जाना विषधर सर्प फुंकर कर रहे थे साँपों के पास एक वर्धा इस्त्री भी कड़ी थी !ये देख कर वो और भी डर गया और भागने लगा और एक कुए में गिर पड़ा कुए की एक शाखा जो उस कुए के भीतर लटक रहे थे उसे पकड़कर वो भी लटक गया !सहसा उसकी नज़र निचे गयी तो वो डर से कपने लगा क्युकी कुए में एक भयंकर अजगर मुह फैलाये उसी की ओर देख रहा था की कब वो आदमी निचे ए और मैं उस आदमी को खा जाऊ फिर तो उस आदमी ने उस शाखा को और कास कर पकड़ लिया लेकिन उसने देखा उस शाखा को दो चूहे एक सफ़ेद एक काला चुना काट रहा था उसने थोडा और ऊपर देखा तोह पाया एक विशालकाय हाथी उस वृक्ष  को हिला रहा है तबी सहाद की गिरती हुई बूंदों में से एक बूंद उसके मुख पर गिरी जो उस पेड़ पर लगे हुए मधुमाखी के छत्ते में से गिर रही थी!वो उसको चाटने लगा और उसके स्वाद में शेस सब कुछ भूल गया !ये कथा किसी एक व्यक्ति की नहीं अपितु प्रत्येक उस व्यक्ति है जो इस संसार रूपी जंगल में भटक रहा है !संसार में आते ही व्यक्ति को काम क्रोध मोह लोभ और अहंकार अदि विकार उसे बुरी तरह जकड लेते हैं ,चिंता रूपी नागिन उसे पूरी जिंदगी दस्ती रहती है,इसमें वर्धा इस्त्री जरा की प्रतीक है जिसके भय से इन्सान भागता रहता है !कुए में बैठा अजगर काल का प्रतीक है जो प्रतिदिन जिव को अपना भोजन बनाने को तैयार रहता है ! छे: मुख वाला हाथी छे: रितुए हैं !काले और सफेद चूहे दिन और रात का प्रतीक हैं जो मनुष्य के जीवन रूपी वृक्ष को धेरे धेरे ख़तम करते जा रहे हैं !इस संसार के अन्दर जिव का मुख्या उद्देश्य प्रभु को मिलना है परन्तु काम क्रोध मोह लोभ अहम् रूपी भयानक पशु आपको मार्ग से विचलित कर देते हैं !ये अपने गंतव्य तक न पहुच कर चौरासी लाख योनियों में जाने को विवश हो जाता है ! परन्तु एक बार ज्ञान के साथ आपका संसर्ग हो जाने के पश्चात् आप हमेशा मनुष्य रूप में ही जनम लेते हो और हर जनम में आपको ज्ञान मिलता ही है चाहे आप चाहें या न चाहें प्रभु ज्ञान के साथ आपको याद दिलाता है आपका मुख्या उद्देश्य क्या है ,और  किस लिए उसने तुम्हे मनुष्य रूप दिया है बस जो जागरूक हैं वो सच्चे  सदगुरु को ढूंढ़ ही लेते हैं और ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं.ज्ञान प्राप्ति में हमें इश्वर को जानने का मौका मिलता है या यु कहें हम इश्वर को साक्षात्  देखते हैं बंद आँखों से जो की एक दिव्या प्रकाश है ,.इश्वर का नाम सुनते हैं बिन कानो के बिन बोले बस सांसों में जो आपकी और हमारी सांसों में निरंतर चलता रहता है ,इश्वर का दिया हुआ आपके और हमारे  घट में समाया हुआ अमृत पिते हैं बिना हाथों के , ये अमृत मृत्यु के समय मस्तक के ध्वस्त किये जाने पर धरती पर गिर जाता है जो इश्वर ने हमें दिया है हम अपनी  नियति और करनी से एक बूँद भी नहीं ग्रहण कर पाते और उसका स्वाद ऐसा होता है की हमे साधना में लींन करा देता है ,इश्वर के मंदिर में बजने वाले घंटे की ध्वनि सुनते हैं और ये सब संभव है क्यूंकि जो मंदिर आप बाहर देखते हैं वही मंदिर हमारे अन्दर है बस आपको उसे जानना है.महसूस करना है ये चार चरण हैं ज्ञान प्राप्ति के !ये दो प्रकार से संभव है या तो  "हटविद्या से" ज़िसमें मनुष्य तपस्या करता है और अपनी कुंडलिनी जाग्रत करता है परन्तु ये हमेशा पूर्ण हो संभव नहीं है! दूसरी विधि है किसी "पूर्ण गुरु से ज्ञान रूप में पाने से" ये मुश्किल नहीं है अगर आप ने उस गुरु को प़ा लिया हो तो !ज्ञान सिर्फ पूर्ण गुरु ही दे सकते हैं !इसीलिए मैं ये चाहती हूँ  की ये ज्ञान आप भी महसूस करें इश्वर को जाने क्यूंकि आज तक आप सिर्फ उस परमात्मा को बस  मानते आये हैं !!

Thursday 5 May 2011

APNA FARZ

जब जन प्रभु को प्रभु से मांगे उसे प्रार्थना जानो !
धन संसार पदार्थ मांगे तोह अज्ञानी मानो!!

लोग कहें हम तो मांगेंगे है अधिकार हमारा!
उससे नहीं तो किस्से मांगे उस बिन कौन हमारा !!

मन उसपर हक़ है सबका है अधिकार हमारा!
पर फ़र्ज़ हमारा प्रति क्या उसके येतो कभी न जाना !!

अधिकार संग फ़र्ज़ जुदा है हे जन उसको जानो !
गर चाहते हो हिस्सा उससे तो फ़र्ज़ निभाना जानो !!

दाता ने मानव तन देकर हमपर एक उपकार किया !
तत्वरूप से जाने उसको मोक्ष मार्ग ये प्रदान किया !!

इसीलिए इस तन को पाकर इश्वर से इश्वर को मांगो!
धन संसार न मांगो उससे भक्ति,शक्ति,सेवा मांगो.!!

इश्वर की इच्छा को जिसने तन मन से स्वीकार किया !
प्रभु प्रेम तब बरसा उसपर ,भक्ति का रंग खूब चढ़ा!!

भगवन  मुझको फिर याद  दिलाया मुझपर ये उपकार किया!
जान  गयी मैं गलत कहाँ हूँ  फ़र्ज़ निभाउंगी ये वादा रहा !!

Monday 2 May 2011

उद्धार gatha


त्रेतायुग की एक गाथा है एक बार प्रभु श्री राम महर्षी अगस्त्य जी के आश्रम में उनसे भेट करने गए महर्षी ने प्रभि का सत्कार किया और भेट स्वरुप उन्हें विश्वकर्मा द्वारा बनाया गया एक दिव्या आभूषण दिया परन्तु प्रभु श्री राम ने उस भेट को लेने में आपत्ति जताई ,प्रभु बोले महर्षि  एक क्षत्रिय  भला संत के हाथों दान कैसे ले सकता है यह तोह निंदनीय कर्म होगा परन्तु महर्षि के बार बार अनुग्रह करने पर श्री राम ने आभूषण स्वीकार कर लिया और एक प्रश्न पुच लिया की हे ऋषिवर इतना कीमती आभूषण आपके पास आया कहाँ से ?
महर्षि अगस्त्य जी ने कहा-राघव त्रेतायुग के अरम्ब में एक अत्यधिक सघन वन हुआ करता था परन्तु उसमे कोई भी पशु पक्षी निवास नहीं करता था .उसी वन के बिच में एक झील थी एक बार मैं उस झील से गुजरा तो मैंने देखा उसी झील के पास वहां एक आश्रम बना हुआ था पर न तो वहां कोई तपस्वी था न कोई जिव जंतु जब मैं थोडा सा आगे बाधा तो मैंने वहां एक बड़ा ही आश्चर्य जनक द्रश्य देखा -एक सरोवर के पास एक मुर्दा पड़ा हुआ था जो बोहत ही हष्ट पुष्ट था .
                                                    अभी मैं उस मुर्दे को देख कर विचार कर ही रहा था की की आकाश से एक दिव्या विमान आकर उस सरोवर के पास उतरा उसमे से एक दिव्या पुरुष बहार निकला सबसे पहले उसने उस सरोवर में स्नान किया और उसके पश्चात् वो सरवर के पास पड़े हुए उस मुर्दे का मास भक्षण करने लगा जब उसका पेट भर गया तब जाकर वो रुका कुछ देर सरोवर की शोभा को निहारा और फिर विमान में बैठकर ज्यों ही जाने लगा तब ही मैंने उसे आवाज़ दी और कहा हे महाभाग तनिक टहरिये मैं आपसे पूछना चाहता हूँ की अप कौन हैं दिखने में तो अप देव स्वरुप लगते हैं परन्तु आपका आहार तो अत्यधिक घ्रणित है अप कहा से ए हैं और ऐसा भोजन क्यों करते हैं ?
रघुनन्दन मेरे प्रश्न सुनकर उस देवता ने हाथ जोड़ लिए और कहा -हे विप्रवर!मैं विदार्ब देश का रजा था और मेरा नाम श्वेत था मेरे भीतर राज्य का सञ्चालन करते करते वैराग्य उत्पन हो गया.इसीलिए मैं अपने सरे राज पथ का त्याग करके म्रत्युपर्यंत तपस्या का संकल्प उठाकर  इस आश्रम में निवास करने लगा .अस्सी हज़ार वर्षों तक तपस्या करने के पश्चान मुझे वरदान र्स्वरूप ब्रह्मलोक में स्थान प्राप्त हुआ मैंने सुना था ब्रह्मा लोग भूक प्यास से रहित है परन्तु मेरी शुदा तो वहां पर ही शांत नहीं हुई और  अधिक बढ़ गयी अपनी समस्या ब्रह्मा देव के समक्ष राखी की हे ब्रह्मा देव ये मेरी किस बारे कर्म का फल है की मेरी भूक प्यास समाप्त ही नहीं हुई अप ही बताएं की मैं किस आहार को ग्रहण करू?
इस पर ब्रह्मा जी ने विचार करके कहा -राजन प्रथ्वी पर दान दिए बिना कोई भी वास्तु आहार के लिए प्राप्त नहीं होती और तुमने तो अपने जीवन में एक फूटी कौड़ी तक दान में नहीं दी फिर अपने किस पुण्य करम के द्वारा तुम भोजन ग्रहण करोगे?इसीलिए ब्रह्मा लोक में भी तुम्हे ये कष्ट भोगना पद रहा है परन्तु व्यथित मत हो ,,प्रथ्वी पर जो तुम्हारा शारीर पड़ा है उसे तुमने अपने राज्य कल में तरह तरह के भोजन से तृप्त और पोषित  किया था हमने वरदान स्वरुप तुम्हारे इस शारीर को अक्षय बना दिया है तुम प्रथ्वी पर जाओ और उसका भक्षण करो ऐसा करते हुए जब तुम्हे सौ वर्ष हो जायेंगे तब महारिशी अगस्त्य के आशीर्वाद से तुम इस संकट से मुक्त हो जाओगे इसी कारन मैं ये घ्रणित कार्य करता हूँ परन्तु अबतो सौ वर्ष बीत गए हैं नजाने कब मुझे उन महाभाग के दर्शन होंगे और मैं मुक्त हो जाऊंगा.
रघुनन्दन रजा की साडी बात सुनकर मैंने उसे कहा की मैं ही महारिशी अगस्त्य ऋषि हूँ और मैं तुम्हारा उधर अवश्य करूँगा ये सुनकर वो नतमस्तक हो मेरे चरणों में गिर पड़ा .मैंने उसे उठाया और तभी उसने उधर स्वरुप ये आभूषण मुझे भेट किया परन्तु राघव मैंने गुरुदाक्षिना की रीती से ही ये आभूषण ग्रहण किया न की लोभवश मेरे आभूषण ग्रहण करते हो वो मुर्दा अद्रश्य हो गया और वो रजा मुक्त ओ गया ..!
यह थी रजा श्वेत की उद्धार गाथा अब जरा इस कहानी पर विकार करके देखें,कहीं ये हमारी जीवन गाथा तो नहीं ? रजा श्वेत के मन में वराग्य आया तो उसने हजारो वर्ष तक तपस्या की ये हजारो वश की तपस्या क्या है?-एक आत्मा भी परमात्मा से मिलन के लिए तपस्या करती है हजारो नहीं परन्तु लाखों वर्षों तक अप पूछेंगे कैसे-दर्हसल चौरासी लाख योनियों से गुजरना ये एक जीवात्मा के लिए तपस्या ही तो है इसी संदार्ब में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-

आकर चारी लचछ चौरासी जोनी ब्रामत यह जिव अविनाशी !
फिरत सदा माया कर फेरा !काल  कर्म  सुभाव गुण घेरा !!अर्थात ये जीवात्मा माया के प्रभाव के कारन चौरासी लाख योनियों में भटक रही है वो हर बार उस परमात्मा से प्रार्थना करते है हे प्रभु अबकी बार मुझे उबार दो मैं आपसे वायदा करता हूँ की जीवन भर आपकी भक्ति करूँगा आपकी भक्ति करके अपने कर्मो को सार्थक करूँगा जीवात्मा की ऐसी दारुण पुकार को सुनकर वो दयालु इश्वर उसपर कृपा करता है उसकी तपस्या के फ़लस्वरू उसे वरदान देता है वह वरदान क्या है? वेह वर दान है मनुष्य तन का प्रपत होना ..
                                   जिस प्रकार रजा श्वेत को अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुक्तिप्राप्त न होकर ब्रह्मलोक प्राप्त हुआ उसी प्रकार जीवात्मा को भी अपनी तपस्या के फलस्वरूप मानव योनी प्राप्त होती है इस मनुष्य तन के द्वारा ही जीवात्मा अपने वास्तविक लक्ष्य को प् सकती है उस इश्वर से उस परमात्मा से एकाकार हो सकती है ..रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में वर्णित है-
साधन धाम मोचछ का द्वारा ! पाई न जिही परलोक संवारा !!
ये तन उस मोक्ष को प्राप्त करने का एक मात्र साधन है ..उपनिषद में भी कहा है.--
इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति न चेदिहवेदिनामाहती विनष्टिः !
भूतेशु भूतेशु विचित्य धीरः ग्रेत्यस्मल्लओक्दम्रत भवन्ति !!
अर्थात मनुष्य तन परमात्मा को प्राप्त करने का एक अवसर है यदि इस शारीर को रहते इस परमात्मा को जन लिया तो कुशल है अन्यथा अनेक योनियों में बर्मन करना पड़ेगा और न जाने कितने कष्ट भोगने पड़ेंगे ..
राजा श्वेत ब्रह्मा लोक प्राप्त करने के पश्चात् भी अपनी शुदा, अपनी इन्द्रियों को काबू नहीं कर सका इसीलिए अपनी भूक को शांत करने के लिए उसे अपने ही मृत शारीर के मास का भक्षण करना पड़ा !जरा एक बार अज संसार की और द्रश्तिपात करके देखें मनुष्य भी क्या यही नहीं कर रहा ?परमात्मा की इतनी बहुमूल्य धरोहर इस मानव तन को प्राप्त कर माया के प्रभाव में akar apna sampurna जीवन bhautik uplabdhiyon को hasil करने में लगा रहा है bhogo को bhogta ja रहा है वो sochta है in bhogo के द्वारा वो अपने जीवन का kalyan कर lega lekin ये satya नहीं है राजा bharthari ने कहा _
hum bhogo को नहीं nhogte परन्तु bhog ही hame bhogte हैं इस शारीर को sudrin banane के लिए hum जो भी साधन ekatrit करते हैं वो hamara मिलन परमात्मा से नहीं kara sakte balki hum swayam ही phanskar swayam को कर्मो के bandhan में khud ही bandh lete हैं ये अपने ही शारीर के मास का भक्षण करना नहीं तो और क्या है ?
कहानी के adhar से राजा श्वेत को दिव्या आभूषण के बदले mukti pradan हुई महारिशी agastya द्वारा thik उसी प्रकार परमात्मा hamein yun अपने ही जीवन को nasht करते dekhta है तोह hum पर daya करता है karuna vas hamare जीवन में भी महारिशी agstya की tarah एक संत bhejta है ve संत guru roop में हमारी bhogo को भोगने की शुदा को शांत कर dete हैं बदले में hum भी उन्हें एक दिव्या आभूषण dete हैं hamara दिव्या आभूषण कोई bahari नहीं apitu bhitri है हमारी shradha भक्ति ही hamara दिव्या आभूषण है guru hamare इस आभूषण को ग्रहण कर hamare samast vikaro का ant कर dete हैं kyuki जिव के भीतर इतनी shamta नहीं की in vishya vikaro का ant कर sake ..
इसीलिए swayam vishyo को tyagna बोहत kathin है परन्तु जब एक sat की karuna प्राप्त होती है ,उसके द्वारा tatva का दर्शन hota है,तो यह sabkuch जो durlabh है sulabh हो jata है इसीलिए khoj karein aise sadguru की की अप अपने बहुमूल्य जीवन को सार्थक कर sakein राजा श्वेत ने तो अपने जीवन का उद्धार कर लिए अब hame dekhna है hum अपने जीवन का उद्धार कब kare nge ...

Friday 25 February 2011

meri kahani.meri jubani:)


..आज से एक महीने पहले मैं भी आपके jaisi   ही थी  और यकीं मनो आज भी वैसी ही हूँ पर जीवनजीने का मकसद आज मुझे पता है.आज मुझे पता है की इश्वर क्या है.आज तक मैं इश्वर को मानती थे पर अब मैं इश्वर को जान
जाउंगी. जान जाना सब कुछ है.परियाप्त है.
मैं देवी माँ को मानती थी बहुत ,  आज भी मानती हूँ  मेरे शब्दों में मानना है जानना नहीं इस बात का ध्यान रखना.फिर एक दिन मेरे जीवन में एकाएक कुछ हुआ किसी ने मुझे कुछ बताया वो कुछ उन सवालों के जवाब थे जो मैं  हमेशा सोचा
करते थी एक एक करके मेरे सब सवाल खत्म हो गए .mujhe विश्वास ही नहीं हुआ मैंने सोचा  सब झूठ  है जैसे की हर कोई मैं या आप सोचेंगे मैंने भी सिरे से नकार दिया क्यूंकि मैं जानती थी की आजकल ढोंगी बहुत हैं लोगों को उल्लू
बनाते हैं और मैं सो गयी.अगले दिन जब मैं देवी स्तुति कर रही थी तब एक पंक्ति आई ...या देवी  सर्वभूतेषु  ज्योतिरुपेंनं  संस्थिता नमः तसते नमः तसते नमः तसते नमोनमः  ..मैं हमेशा उसको पढ़ती थी पर उस दिन meri नज़र उसपर
जैसे अटक ही गयी मैंने अपनी मम्मी से पूछ ही लिया मम्मी इसका अर्थ बताओ जरा..मम्मी ने हर बार की तरह उसका अर्थ बताया.-देवी माँ कहती है मेरा असली रूप ज्योति है न की जिस मूर्ति की तुम पूजा करते हो और हे माँ जिस ज्योति रूप
में तुम हो उस रूप को हम बारम्बार प्रणाम करते हैं..देवी माँ कहती हैं की उस रूप को तुम जानो ..मुझे पहचानो न की सिर्फ maano .जैसे मैं देवी माँ को मानती हूँ वैसे ही आज लोग प्रथक प्रथक देवी देवता को मानते होंगे तो सभी देवी देवता
इस बात को शास्त्रों में या पुराणो में कह चुके हैं की हमारे ज्योति रूप को जानो तभी तुम इस जीवन को जी पाओगे .
एक बार की बात है इश्वर ने ये प्रथ्वी बनाई सब जीव  जंतु ,पेड़ पौधे बना दिए अब्ब बना तो दिए अब्ब इश्वर ने सोचा की मै खुद कहाँ रहूँ ? .मैंने सबको तो स्थान दे दिया अब्ब मैं खुद कहाँ रहूँ ? तब इश्वर ने मनुष्य बनाया और खुद को उसमें रख लिया और ताला  लगा दिया .तभी से इश्वर मनुष्य में हैं इस धरती का सञ्चालन करते हैं और हम बुदधू  लोग इश्वर को मूर्ति मंदिर तीरथ में ढूंढ़ते हैं. है ना बेवकूफी? हम लोग उसी हिरण की तरह हैं जो कस्तूरी के लिए इधर उधर  भटकता है परन्तु ये नहीं जनता की जिसकी महक से वो  इधर उधर भाग रहा है वो उसी की नाभि में बनती है और समाई हुयी है .आपको लगता होगा की अभी हम बच्चे हैं तो ये सब अद्यात्मा की बातें बूढ़े होकर आनि  चाहिए अभी तो खेलने कूदने के दिन हैं मौज करो तो ये सुनो- एक लड़का था राम हर लड़के की तरह वो भी पूजा पाठी था पर कभी असली इश्वर को जाना नहीं सोचा बुढ़ापे में ज्ञान लूँगा अभी जीवन जीता हूँ और हर इन्सान की तरह वोह भी ख़ुशी ख़ुशी मोह में जीवन जीता रहा भूल गया बुढ़ापे में क्या सोचा था तकलीफ बीमारी सताने लगी एक दिन मृत्यु को भी प्राप्त हो गया .अब एक प्रकाश में समां गया वहां इश्वर ने पूछा बेटा मैंने तुझे मनुष्य तन दिया था मुझे जान्ने के लिए तुने तो उससे गवा दिया भोग में .ऐसा क्यूँ किया? चल अब तुने भूग चुना है तो क्या तू उस भोग से कुछ लाया है अब तो वो रोने लगा बोला मैंने तो कुछ भी नहीं कमाया मैं तो ऐसे ही आगया? हे इश्वर मुझे माफ़ करदो मुझे अगला जनम मनुष्य  का देदो मैं अवश्य आपकी स्तुति करूँगा आपको जानूंगा और अंत मैं आप में लीं हो जाऊंगा .तो आप जानते हैं ultimately हम लोगों को इश्वर में ही लीं होना है लेकिन हम मोह maya में ये भूल jate हैं और jab इश्वर के pass jate हैं hamesha मनुष्य yoni mangte हैं की shayad bhagwan को jaan lein  क्यूंकि सिर्फ इसी योनी में आप इश्वर को जान सकते हैं क्युकी इसी में इश्वर हैं पर yahan aakar phir भूल jate हैं...और अनंत काल तक घूमते रहते हैं घूमते रहते हैं अलग अलग योनियों में कभी किसी में -कभी जानवर बन जाते हैं कभी चिंटी कभी बन्दर कभी हाथी .लेकिन मनुष्य तभी बनते हैं जब अपने अंत समय में यानि मृत्यु के समय में इश्वर को याद करते हैं ,बोहत भग्य से मिलती  है मनुष्य योनी यहाँ तक की देवी देवता यानि इन्द्र आदि ये सब तरसते हैं मनुष्य बन्ने के लिए पता है?चलो ये भी बताती हूँ....जब हमारे अच्छे कर्म बोहत हो जाते हैं तब हम स्वर्ग प्राप्त कर लेते हैं वह हम भी देवी देवता की तरह जीवन जीते हैं परन्तु आपको पता है जब हमारे वो सब अच्छे कर्म ख़त्म हो जाते हैं हम अपने कर्म अनुसार प्रथ्वी पर आजाते हैं फिर इस योनी चक्र में घुमने लगते हैं हैं इसीलिए स्वर्ग का रास्ता भी परमानेंट नहीं है भाई . सिर्फ एक जगह है जहाँ इश्वर हैं वो है मनुष्य योनी इस योनी में हम इश्वर को जान सकते हैं ब्रह्मा ज्ञान से इसीलिए इसे गवा मत देना निवेदन है .और जैसे इस संसार में मनुष्य नियम बनाते हैं उसी तरह भगवन का एक नियम है भगवन ने इस नियम के तहत गुरु को इस दुनिया में उतरा.ये साक्षी है हर युग में गुरु आते हैं और हमें ब्रह्मा ज्ञान देते हैं.वो हमारे सर पर हाथ रखते हैं और हमारे अन्दर इश्वर को जागते हैं.अब आप सोचोगे गुरु ही क्यों?तोह सुनो इश्वर अद्भुत शक्ति का भंडार है वोह इतनी जयादा शक्ति का भंडार है की अगर हमे वो directly  मिलती है तो वो हमे जला सकती है क्युकी हमारी capacity  बहुत  छोटी है तो हमे एक stabilizer  की जरुरत पड़ेगी वो  stabilizer  ही गुरु है .जैसे की एक ग्लास में तुम पानी भरोगे directlyनल से तोह ग्लास भरने के बाद  पानी उसमें से गिर जायेगा पर अगर आप जग के माध्यम से पानी भरोगे तब जितना आप समां पाओगे उतना ही आएगा वो जग यहाँ गुरु है.इसीलिए इश्वर ने ये नियम यानि rule बना रखा है की गुरु के माध्यम से ही तुम अपने अन्दर मुझे देखोगे.
अब आप सोचोगे की यहाँ पाखंडी गुरु भरे हुए हैं तो  सही गुरु कौन है कैसे पहचाने? तोह सीधी सरल सी बात है, जो गुरु कहे की मैं तुझे इश्वर तेरे अन्दर दिखाऊंगा वही असली गुरु है वही पूर्ण गुरु है.इस चार घंटे के ज्ञान में तुम महापंडित नहीं हो जाते नाही  तुम एक असाधारण जीवन जीने लगते हो न ही तुम घर छोड़ते हो न ही तुम चोगा ओढ़ कर घूमते हो.न ही तुम अपना संचित धन लुटाने लगते हो और न ही तुम पढाई लिखी छोड़ कर सन्यासी बन जाते हो ..ये भरम  मत पलना ..भगवन को पाना सुख पाना है दुःख नहीं बल्कि बह्मा ज्ञान लेकर तुम अपने अन्दर एक प्रकाश देखते हो जो भी इश्वर कहता है वो सुनते हो कही भी हो बस खुश रहते हो . कुछ पाने का एहसास होता है की मेरे अन्दर भगवन हैं मैंने सिर्फ कहा नहीं है देखा भी है और फिर देखो तुम्हारे सारे काम कैसे बनते हैं ..अरे इश्वर की महिमा एक अमृत है वोह अम्रित तुम्हे अपने अन्दर दिखेगा फिर कही मत जाओ बस जब बात करनी हो अपने अन्दर करो .please  इश्वर को जानो सिर्फ मनो मत .ये मुफ्त का सत्संग है अभी तो पर इस कलयुग मैं एक दिन ऐसा आएगा जब लोग अटैची भर कर पैसा लायेंगे सिर्फ ब्रह्मा ज्ञान पाने के लिए पर अफ़सोस तब उन्हें ये नहीं मिलेगा...पता है भारत का नाम कैसे पड़ा भा -मतलब ब्रह्मा ज्ञान रत - मतलब डूबे हुए अर्थात ब्रह्मा ज्ञान में डूबे हुए एक समय ऐसा था जब हर कोई ब्रह्मा ज्ञान में डूबा हा था तब उसका नाम यानि उस देश का नाम भारत पड़ा...मेरे विषय में बता दूं मैं ज्ञान लुंगी जल्दी क्युकी मुझे वो गुरु मिल गए हैं श्री आशुतोष जी महाराज !!!इश्वर कृपा से आप पर ही ये ज्ञान बरसे यही कामना है......

Thursday 24 February 2011

seek and you shall find it...:)

आत्मा सबकी प्यासी है एक अजीब सी बेचैनी एक अधूरापन सभी को सताता है.एक दर्द भरी करह सबके अन्दर करवटें लेती है.लेकिन कुछ लोग होते हैं जो अपनी रूह की इस प्यास को पहचान पाते हैं.अपने में गहरा झांककर आत्मा का रोना समझ पते हैं.और फिर समझने के बाद उसका दाना पानी जुटाने के लिए चल पड़ते हैं आत्मा का भोजन और रस परमात्मा हैं.-रासो वै सः भगवन से मिलकर ही रूह की भूक मिटती है इसीलिए वोह बिरले निकल पड़ते हैं इस खोज में की कही तोह उनकी आत्मा सुखी होगी.जिसका एक ही लक्ष्य होता है "इश्वर "इस खोज यात्रा में तरह तरह के पड़ाव आते हैं कहीं पाखंड का झाला मिलता है कही  ऊलजलूल रुढियों का मकडजाल .कही कही तोह जिग्यासों का मनन ठगने के लिए बड़ी लुभावनी meditation  तकनीकें या पद्तियाँ भी इजात करली गयीं हैं सब पेंतारें बेफिजूल हैं..
कभी आपने सोचा है की फसते क्यूँ हैं?..इश्वर ने कहा है की फसते वही हैं जिन्होंने अभी अपनी अन्दर की आवाज को ठीक तरह से सुना नहीं है जो अपनी आत्मा नहीं मन  की आवाज को लेकर सत्य की खोज में निकलते हैं इसीलिए जहाँ कहीं उन्हें अपने मन के अनुकूल कुछ मिलता है वो वहीँ ठहर जाते हैं लेकिन इश्वर के सच्चे परवाने इश्वर से एक पाई भी कम में सौदा नहीं करते .the real seekers of God do not settle for even a penny lees then GOD! वो तब तक पंख फद्फदते हैं जब तक इश्वर की दिव्या ज्योति का दर्शन नहीं कर लेते वे तब तक खोजते हैं तब तक एक पूर्ण तत्वदर्शी गुरु की आशीष छाया में नहीं आजाते और उनसे इश्वर रूपी परम सौगात नहीं पा लेते..ये तत्त्व गुरु इश्वर के भेजे हुए अवतार होते हैं जो हमें ब्रह्मज्ञान द्वारा इश्वर दर्शन करते हैं..ब्रह्मा ज्ञान पाने का एक मात्र सहारा ज्ञानी गुरु की शरण .

A LETTER...to GOD..

DEAR ALL..
I have heard from everyone that february is a month wchich brings peoples focus on LOVE.especially on valentine day,all go crazy in the name of love.
,so,today i also want to share with you how much my valentine loves me(ofcourse HE LOVES YOU AS WELL).but before starting i should mention who he is.well he is none other then my beloved GOD.
          friends,can u realize the depth of his love?he loves me so much that my 100 mistakes become negligible in front of my one good deed.i realised the difference btw Gods love and that of the worlds,when my one small mistake ruined the effect of 100 good things that i did for the worthy relations.
i remember the day when i saw the love of two best friends of this world.i watched their care and affection towards each other.but i was shocked when i noticed one of them closing the hole in the wall of the basement where they worked.do you know why?it ws not any reparing work done out of concern for the other.rather it was an effort to hide a lottery ticket that had won the first prize of a flat in a posh colony.whereas what to say of my friend!when HE came on earth in the grab of lord Krishna,HE built an entire palace for his friend SUDAMA(in return of few grains of rice)..
where worldly love binds in narrow thinking and constructs big wall of possesiveness around,there GODs love makes us broad minded and free from all bondages..
GOD loves me unconditionally but world is always staring at me with the bag full of expectations for which it loves me.
GODs love make me strong to win over the difficult circumstances but worldly love mAkes me weak and pushes me in troublesome conditions.
OH PEOPLE! realize the beauty and limitations of HIS LOVE.eachtime WHEN HE COMES ON THIS EARTH IN THE GARB OF A PERFECT MASTER,YOU INSULT HIS LOVE...you dont realise he is that one.until its too late .you looses that apportunity..but even HE IS ALWAYS CONCERNED FOR YOUR WELFARE.(realise why he came to this earth)
in the end i only want to say...THE WORLD MAKES ME "FALL IN LOVE" BUT HIS LOVE MAKES ME "RISE" TO THE HIGHEST ABODE OF BLISS..
I LOVE YOU GOD:)

Friday 18 February 2011

ishwar ek prakash

सबका मालिक एक है.यानी इश्वर एक है.ये एक maths  के एक जैसा नहीं है,जिसमें एक के बाद दो,तीन चार होते हैं.इश्वर का एकत्व ऐसा है जिसमें दूसरे के लिए कोई स्थान ही नहीं है.बाकि सब चीजें तोह उसी की उत्पत्ति हैं.(रूप ) हैं.इस जगत में जो भी है वो इश्वर का ही आवास है .वो हर चीज में समाया हुआ है.ब्रह्माण्ड में इश्वर के अलावा और कोई दूसरी सत्ता ही नहीं है.
भौतिक शास्त्र के नियम के मुताबिक सभी पदार्थ उर्जा (energy) के रूपांतरण हैं.यदि हम पदार्थ को विभाजित करते जायें,तो सब अतोमिक पार्टिकल तक पहुचने पर पदार्थ,उर्जा (energy) में बदल जाता है और शुन्यता में विलीन सो जाता है.यह शुन्यता भी खली नहीं है.वास्तव में वेह उस तत्त्व से भरा हुआ है,जो  गतिशील है तथा एक है और शुन्यता में  अंतर्व्यप्ता है. ये वही आधारभूत तत्त्व है,जो स्रष्टि निर्माण के समय पदार्थोपत्ति करता है (यानि विश्व निर्माण ) और प्रलय कल में सबको समेत लेता है.ब्रह्माण्ड में न कोई नयी चीज बनती है और न ही नष्ट होती है ये वही दिव्यता है जिसे हम इश्वर ,अल्लाह,या गोद कहते हैं.ये विज्ञानं .दर्शन तर्कशास्त्र का परम सत्य है.
तोह फिर इश्वर है क्या? इश्वर एक प्रकाश है.और जिन्हें  हम पूजते हैं फिर वोह क्या है?.वो इश्वर के भेजे हुए रूप हैं.जो अलग अलग काल में अलग अलग कलाओं के साथ जन्में .जैसे श्री कृष्ण 16  कलाओं के ज्ञाता थे और श्री राम 12 कलाओं यानि(energy) के ज्ञाता थे. ये संत महात्मा थे जिन्हें हम गोडस मस्सेंगेर भी कहते हैं.वो अपनी अपनी energy लेकर इस संसार में आये और उस लोक के लोगों को (ब्रह्मा ज्ञान) दिया. यानि उस प्रकाश रूपी इश्वर को जानने का पहचानने का एक मात्र जरिया.ब्रह्मा ज्ञान से हम इश्वर को जानते हैं उन्हें अपने अन्दर महसूस करते हैं.और ये सिर्फ उसी युग के संत या गोडस मस्सेंगेर ही करा सकते हैं..जैसे श्री राम ने सत  युग में कराया और श्री कृष्ण ने द्वापर में कराया था.जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मा ज्ञान दिया और उन्हें अपना विराट रूप दिखाया तोह अर्जुन को कुछ नहीं दिखा क्यूंकि उसे पता ही नहीं था की असली इश्वर कैसा है..वो एक प्रकाश है दिव्या प्रकाश .तब उसने  भगवन से कहाँ मुझे तोह कुछ नहीं दीखता तब श्री कृष्ण ने उसे दिव्या नेत्र यानि उसका तीसरा नेत्र खोल दिया जिसमें उसे इश्वर के दर्शन हुए. इस तीसरे नेत्र खुलने को ही कहते हैं ब्रह्मा ज्ञान ,या simple words में कहो एक जरिया इश्वर को जानने का. हर ईश्वरीय सत्ता इसी  इस्वर का गुणगान या ध्यान साधना में लींन  रहती है.

Thursday 17 February 2011

ishwar ek hai

लोग कहते हैं इश्वर एक है क्या आपने सोचा है -की अगर इश्वर एक है तो फिर लोग अलग अलग इश्वर की पूजा क्यूँ करते हैं? हमने सुना है की इश्वर निराकार है-मतलब जिसका कोई आकर यानि figure  नहीं है.तो फिर हम मूर्ति पूजा क्यों करते हैं. ? क्या जिस इश्वर की हम पूजा कर रहे हैं वही पूर्ण है?
भगवन शिव किसका ध्यान करते रहते हैं? किसकी भक्ति में भगवन विष्णु जी लीं रहते हैं? कौन है वो ?क्या सोचा है? क्या कृष्ण और राम सबब कुछ हैं?
कहते हैं राम राम जपने से इश्वर मिलता है.तोह क्या जो gunga है उसे कभी भगवन नहीं मिलते?
कहते हैं तीरथ यात्रा करने से भगवन मिलते हैं तोह क्या लंगड़े को कभी इश्वर प्राप्ति का सुख नहीं मिलेगा?
कहते ये भी हैं की भगवन के मुख मंडल के दर्शन करने से सब परेशानिया दूर हो जाती हैं तो नेत्रहीन का क्या होगा?
मेरा मतलब है ....आपके मन में ये प्रश्न आते होंगे पर क्या आपने पुचा है खुद से ...
मेरे पास इसके उत्तर हैं..लेकिन उससे पहले आपको जिज्ञासु बनना पड़ेगा..सोचिये..और इंतजार कीजिये मेरे अगले विशेषक का. इश्वर कृपा से ये ज्ञान आपपर भी barsey..
धन्यवाद्..

ishwar

ये एक रूमी जी की बात है, वो मौलाना थे .वो अपने बल-साथियों के साथ छत्त पर खेल रहे थे.खेल-खेल में,उनके दोस्तों ने नया खेल इजात किया-चलो चलो हम एक छत्त से दूसरी छत्त पर कूदें.बालक रूमी नाक नुह सकोद कर बोला-धत,यह भी कोई खेल है,एक छत्त से दूसरी छत्त पट कूदना कोई खेल है यह to कुत्ते बिल्ली भी खेल लेते हैं.हम तोह मनुष्य के बच्चे हैं.हमें तोह ऐसी छलांग लगनी है,जो इस संसार से खुदा के घर तक पंहुचा दे. निःसंदेह, शास्त्र भी कहते हैं की हम अनेक योनियों की सीढियां चढ़ कर "मनुष्य जीवन" रूपी छत्त पर पहुचे हैं.अब निर्णय हमें लेना है की हम छोटे मोटे लक्ष्य को पूरा करते हुए एक छत्त से दूसरी छत्त पर छलांग लगते हैं या फिर सीधा इश्वर के घर तक की.
मेरा लिखा हुआ ये ब्लॉग, यह स्तम्भ उसी शाश्वत पथ पर प्रकाश दाल रहा है,जिससे आप वो ऊँची छलांग लगा सकें. इसीलिए ये ब्लॉग  इश्वर के जिज्ञासुओं और पिपासुओं के लिए विशेष रूप से prernadayak है.

धन्यवाद..