Tuesday 10 May 2011

जीवन शव सामान

मानव जीवन एक यात्रा है और इस यात्रा का आरंभ होता है, उसके जाम के साथ!एक शिशु जनम लेता है,शैशव अवस्था आती है, फिर युवा अवस्था और वर्धा अवस्था इसके बाद अंतिम चरण में मृत्यु का तांडव होता है!साधारणतः लोग जीवन मृत्यु को ही जीवन समझते हैं किन्तु महापुरुषों ने इसको जीवन नहीं कहा है!
वास्तव में जीवन का आरंभ तबी होता है जब हम उस प्रभु की वास्तविक भक्ति को जन कर उस मृत्यु से उस अमृतमय प्रभु की और जाना आरंभ कर देते हैं,
इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है --
जिनःह  हरी भगती ह्रदय नहीं आनी!
जीवित सव सामान तेई  प्राणी !! राम चरित्र मानस
जिनके अन्तेह्करण में प्रभु की भक्ति नहीं है वो एक शव के सामान है !महापुरुषों के अनुसार जीवन केवल श्वासों के चलने का नाम नहीं है अपितु प्रभु की भक्ति को जानकर मनुष्य जनम के उद्देश्य को पूर्ण कर लेना है !
सो जीवियो जिसु मनी वसिया सोई !
नानक अवरु न जीवे कोई !! गुरु वाणी
जिसके मन में प्रभु का नि वस् हो गया है वास्तव में वाही जीवित है बाकि सभी तोह मृतक ही हैं क्यूंकि वो इश्वर को जाने बिना सण प्रतिक्षण मृत्यु की और बढ़ रहे हैं!
कबीरदास जी कहते हैं--
जननी जानत सुतु बड़ा होत है!
इतना कु न जाने ज़ि दिन दिन अवधा घटतु है !!
एक माँ अपने बच्चे  का जनम दिन मानती है तोह बड़ी ख़ुशी से कहते है की मेरा पुत्र १० वर्ष का हो गया वो ये नहीं जानती की उसका पुत्र १० वर्ष और मृत्यु के निकट पहुच गया जबकि वास्तविकता यह है की हम जीवन की आर नहीं बल्कि मृत्यु की और अग्रसर हो रहे हैं.
महाभारत की एक कथा अति है की एक व्यक्ति घने जंगल में गया और मार्ग भूल गया उसने मार्ग धुंडने का बोहत प्रयास  किया पर उसे मार्ग नहीं मिला !उस जंगल में शेर चीते रिच हठी बोहत जोर जोर से गर्जना कर रहे थे ये सुन कर वो बोहत दर गया और इधर उधर भागने लगा !भागते भागते वो एक ऐसे स्थान पर पहुच गया जाना विषधर सर्प फुंकर कर रहे थे साँपों के पास एक वर्धा इस्त्री भी कड़ी थी !ये देख कर वो और भी डर गया और भागने लगा और एक कुए में गिर पड़ा कुए की एक शाखा जो उस कुए के भीतर लटक रहे थे उसे पकड़कर वो भी लटक गया !सहसा उसकी नज़र निचे गयी तो वो डर से कपने लगा क्युकी कुए में एक भयंकर अजगर मुह फैलाये उसी की ओर देख रहा था की कब वो आदमी निचे ए और मैं उस आदमी को खा जाऊ फिर तो उस आदमी ने उस शाखा को और कास कर पकड़ लिया लेकिन उसने देखा उस शाखा को दो चूहे एक सफ़ेद एक काला चुना काट रहा था उसने थोडा और ऊपर देखा तोह पाया एक विशालकाय हाथी उस वृक्ष  को हिला रहा है तबी सहाद की गिरती हुई बूंदों में से एक बूंद उसके मुख पर गिरी जो उस पेड़ पर लगे हुए मधुमाखी के छत्ते में से गिर रही थी!वो उसको चाटने लगा और उसके स्वाद में शेस सब कुछ भूल गया !ये कथा किसी एक व्यक्ति की नहीं अपितु प्रत्येक उस व्यक्ति है जो इस संसार रूपी जंगल में भटक रहा है !संसार में आते ही व्यक्ति को काम क्रोध मोह लोभ और अहंकार अदि विकार उसे बुरी तरह जकड लेते हैं ,चिंता रूपी नागिन उसे पूरी जिंदगी दस्ती रहती है,इसमें वर्धा इस्त्री जरा की प्रतीक है जिसके भय से इन्सान भागता रहता है !कुए में बैठा अजगर काल का प्रतीक है जो प्रतिदिन जिव को अपना भोजन बनाने को तैयार रहता है ! छे: मुख वाला हाथी छे: रितुए हैं !काले और सफेद चूहे दिन और रात का प्रतीक हैं जो मनुष्य के जीवन रूपी वृक्ष को धेरे धेरे ख़तम करते जा रहे हैं !इस संसार के अन्दर जिव का मुख्या उद्देश्य प्रभु को मिलना है परन्तु काम क्रोध मोह लोभ अहम् रूपी भयानक पशु आपको मार्ग से विचलित कर देते हैं !ये अपने गंतव्य तक न पहुच कर चौरासी लाख योनियों में जाने को विवश हो जाता है ! परन्तु एक बार ज्ञान के साथ आपका संसर्ग हो जाने के पश्चात् आप हमेशा मनुष्य रूप में ही जनम लेते हो और हर जनम में आपको ज्ञान मिलता ही है चाहे आप चाहें या न चाहें प्रभु ज्ञान के साथ आपको याद दिलाता है आपका मुख्या उद्देश्य क्या है ,और  किस लिए उसने तुम्हे मनुष्य रूप दिया है बस जो जागरूक हैं वो सच्चे  सदगुरु को ढूंढ़ ही लेते हैं और ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं.ज्ञान प्राप्ति में हमें इश्वर को जानने का मौका मिलता है या यु कहें हम इश्वर को साक्षात्  देखते हैं बंद आँखों से जो की एक दिव्या प्रकाश है ,.इश्वर का नाम सुनते हैं बिन कानो के बिन बोले बस सांसों में जो आपकी और हमारी सांसों में निरंतर चलता रहता है ,इश्वर का दिया हुआ आपके और हमारे  घट में समाया हुआ अमृत पिते हैं बिना हाथों के , ये अमृत मृत्यु के समय मस्तक के ध्वस्त किये जाने पर धरती पर गिर जाता है जो इश्वर ने हमें दिया है हम अपनी  नियति और करनी से एक बूँद भी नहीं ग्रहण कर पाते और उसका स्वाद ऐसा होता है की हमे साधना में लींन करा देता है ,इश्वर के मंदिर में बजने वाले घंटे की ध्वनि सुनते हैं और ये सब संभव है क्यूंकि जो मंदिर आप बाहर देखते हैं वही मंदिर हमारे अन्दर है बस आपको उसे जानना है.महसूस करना है ये चार चरण हैं ज्ञान प्राप्ति के !ये दो प्रकार से संभव है या तो  "हटविद्या से" ज़िसमें मनुष्य तपस्या करता है और अपनी कुंडलिनी जाग्रत करता है परन्तु ये हमेशा पूर्ण हो संभव नहीं है! दूसरी विधि है किसी "पूर्ण गुरु से ज्ञान रूप में पाने से" ये मुश्किल नहीं है अगर आप ने उस गुरु को प़ा लिया हो तो !ज्ञान सिर्फ पूर्ण गुरु ही दे सकते हैं !इसीलिए मैं ये चाहती हूँ  की ये ज्ञान आप भी महसूस करें इश्वर को जाने क्यूंकि आज तक आप सिर्फ उस परमात्मा को बस  मानते आये हैं !!

1 comment:

  1. manna aasan hai........par JANNE KE LIYE CHAHIYE BASS thodi himmat ,abhyas,vairagya

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