सबका मालिक एक है.यानी इश्वर एक है.ये एक maths के एक जैसा नहीं है,जिसमें एक के बाद दो,तीन चार होते हैं.इश्वर का एकत्व ऐसा है जिसमें दूसरे के लिए कोई स्थान ही नहीं है.बाकि सब चीजें तोह उसी की उत्पत्ति हैं.(रूप ) हैं.इस जगत में जो भी है वो इश्वर का ही आवास है .वो हर चीज में समाया हुआ है.ब्रह्माण्ड में इश्वर के अलावा और कोई दूसरी सत्ता ही नहीं है.
भौतिक शास्त्र के नियम के मुताबिक सभी पदार्थ उर्जा (energy) के रूपांतरण हैं.यदि हम पदार्थ को विभाजित करते जायें,तो सब अतोमिक पार्टिकल तक पहुचने पर पदार्थ,उर्जा (energy) में बदल जाता है और शुन्यता में विलीन सो जाता है.यह शुन्यता भी खली नहीं है.वास्तव में वेह उस तत्त्व से भरा हुआ है,जो गतिशील है तथा एक है और शुन्यता में अंतर्व्यप्ता है. ये वही आधारभूत तत्त्व है,जो स्रष्टि निर्माण के समय पदार्थोपत्ति करता है (यानि विश्व निर्माण ) और प्रलय कल में सबको समेत लेता है.ब्रह्माण्ड में न कोई नयी चीज बनती है और न ही नष्ट होती है ये वही दिव्यता है जिसे हम इश्वर ,अल्लाह,या गोद कहते हैं.ये विज्ञानं .दर्शन तर्कशास्त्र का परम सत्य है.
तोह फिर इश्वर है क्या? इश्वर एक प्रकाश है.और जिन्हें हम पूजते हैं फिर वोह क्या है?.वो इश्वर के भेजे हुए रूप हैं.जो अलग अलग काल में अलग अलग कलाओं के साथ जन्में .जैसे श्री कृष्ण 16 कलाओं के ज्ञाता थे और श्री राम 12 कलाओं यानि(energy) के ज्ञाता थे. ये संत महात्मा थे जिन्हें हम गोडस मस्सेंगेर भी कहते हैं.वो अपनी अपनी energy लेकर इस संसार में आये और उस लोक के लोगों को (ब्रह्मा ज्ञान) दिया. यानि उस प्रकाश रूपी इश्वर को जानने का पहचानने का एक मात्र जरिया.ब्रह्मा ज्ञान से हम इश्वर को जानते हैं उन्हें अपने अन्दर महसूस करते हैं.और ये सिर्फ उसी युग के संत या गोडस मस्सेंगेर ही करा सकते हैं..जैसे श्री राम ने सत युग में कराया और श्री कृष्ण ने द्वापर में कराया था.जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मा ज्ञान दिया और उन्हें अपना विराट रूप दिखाया तोह अर्जुन को कुछ नहीं दिखा क्यूंकि उसे पता ही नहीं था की असली इश्वर कैसा है..वो एक प्रकाश है दिव्या प्रकाश .तब उसने भगवन से कहाँ मुझे तोह कुछ नहीं दीखता तब श्री कृष्ण ने उसे दिव्या नेत्र यानि उसका तीसरा नेत्र खोल दिया जिसमें उसे इश्वर के दर्शन हुए. इस तीसरे नेत्र खुलने को ही कहते हैं ब्रह्मा ज्ञान ,या simple words में कहो एक जरिया इश्वर को जानने का. हर ईश्वरीय सत्ता इसी इस्वर का गुणगान या ध्यान साधना में लींन रहती है.
भौतिक शास्त्र के नियम के मुताबिक सभी पदार्थ उर्जा (energy) के रूपांतरण हैं.यदि हम पदार्थ को विभाजित करते जायें,तो सब अतोमिक पार्टिकल तक पहुचने पर पदार्थ,उर्जा (energy) में बदल जाता है और शुन्यता में विलीन सो जाता है.यह शुन्यता भी खली नहीं है.वास्तव में वेह उस तत्त्व से भरा हुआ है,जो गतिशील है तथा एक है और शुन्यता में अंतर्व्यप्ता है. ये वही आधारभूत तत्त्व है,जो स्रष्टि निर्माण के समय पदार्थोपत्ति करता है (यानि विश्व निर्माण ) और प्रलय कल में सबको समेत लेता है.ब्रह्माण्ड में न कोई नयी चीज बनती है और न ही नष्ट होती है ये वही दिव्यता है जिसे हम इश्वर ,अल्लाह,या गोद कहते हैं.ये विज्ञानं .दर्शन तर्कशास्त्र का परम सत्य है.
तोह फिर इश्वर है क्या? इश्वर एक प्रकाश है.और जिन्हें हम पूजते हैं फिर वोह क्या है?.वो इश्वर के भेजे हुए रूप हैं.जो अलग अलग काल में अलग अलग कलाओं के साथ जन्में .जैसे श्री कृष्ण 16 कलाओं के ज्ञाता थे और श्री राम 12 कलाओं यानि(energy) के ज्ञाता थे. ये संत महात्मा थे जिन्हें हम गोडस मस्सेंगेर भी कहते हैं.वो अपनी अपनी energy लेकर इस संसार में आये और उस लोक के लोगों को (ब्रह्मा ज्ञान) दिया. यानि उस प्रकाश रूपी इश्वर को जानने का पहचानने का एक मात्र जरिया.ब्रह्मा ज्ञान से हम इश्वर को जानते हैं उन्हें अपने अन्दर महसूस करते हैं.और ये सिर्फ उसी युग के संत या गोडस मस्सेंगेर ही करा सकते हैं..जैसे श्री राम ने सत युग में कराया और श्री कृष्ण ने द्वापर में कराया था.जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मा ज्ञान दिया और उन्हें अपना विराट रूप दिखाया तोह अर्जुन को कुछ नहीं दिखा क्यूंकि उसे पता ही नहीं था की असली इश्वर कैसा है..वो एक प्रकाश है दिव्या प्रकाश .तब उसने भगवन से कहाँ मुझे तोह कुछ नहीं दीखता तब श्री कृष्ण ने उसे दिव्या नेत्र यानि उसका तीसरा नेत्र खोल दिया जिसमें उसे इश्वर के दर्शन हुए. इस तीसरे नेत्र खुलने को ही कहते हैं ब्रह्मा ज्ञान ,या simple words में कहो एक जरिया इश्वर को जानने का. हर ईश्वरीय सत्ता इसी इस्वर का गुणगान या ध्यान साधना में लींन रहती है.
mere ek sawaal kaa jawab do main kisi mushkil me hu aur usse nikalna chahta hu aur mujhe ishwar par vishwas hai main sab bhagwano ko maanta hu mujhe pta hai sab ek hai par main alag alag vrat rakhta hu.th maine kisi se suna ki insaan ko ek bhagwaan main vishwaas rakhna chiye naa ki alag alag toh koi btao pls kya main galat hu aur mujhe kya krna chiye?main bhot jayada pareshan hu
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